आयोध्या पर फैसला २४ सितम्बर २०१० को आने वाला था जो की अब 29 सितम्बर २०१० को आएगा, सरकार ने किसी भी तरह की अनहोनी ना हो ये सोच कर आयोध्या में सुरक्षा व्यवस्था बड़ा दी है, जगह जगह पर तलाशी ली जा रही हैं,मोबाइल पर मेसेज बल्क में भेजने पर भी पाबन्दी पूरे देश में 30 सितम्बर २०१० तक लागू कर दी है, फैसला चाहे जो भी हो हर कोई इस फैसले का इंतज़ार कर रहा है, सरकार द्वारा इतनी सख्ती करना क्या ये सन्देश खुद नहीं देता की फैसला कुछ ऐसा आएगा जो शायद देश में असंतोष उत्पन्न कर सकता है, मैने कुछ दिन पहले समाचार पत्र में पड़ा था की आयोध्या के लोग इस बात की ज्यादा फ़िक्र नहीं कर रहे की क्या होगा, लेकिन सरकार इस बात को लेकर ज्यादा चिंतित दिखाई दे रही है की कही कोई अनहोनी ना हो जाए, जिस वक़्त बाबरी मस्जिद गिराई गई थी उस वक़्त लोगों ने ज्यादा जोश से काम लिया था परन्तु आज वक़्त बदल चुका है हर कोई समझ गया है की राम हो या अल्लाह दोनों ही एक हैं दोनों का मकसद समाज की बुराईयो को समाप्त करके लोगो को धर्म के रस्ते पर चलना सिखाना था, लोगो की धार्मिक भावनाओ को हथियार बना के बाबरी मस्जिद गिरवाई गई थी, किसी भी धार्मिक ग्रन्थ में नहीं लिखा की दूसरा धर्म अच्छा नहीं है, इश्वर केवल एक है और हम सभी भिन्न - भिन्न प्रकार से उसको पूजते हैं, जिस प्रकार किसी भवन का निर्माण करने से पहले खम्भों का निर्माण किया जाता है ताकि भवन सुरक्षित रह सके उसी प्रकार भारत को सुरक्षित एवं मजबूत बनाने के लिए हमे उसके चारो खम्भों को मजबूती देनी होगी यदि एक भी खम्भा कमजोर हुआ या ठीक से नहीं स्थापित किया गया तो भवन भी सुरक्षित नहीं रह पायेगा, भारत के सुखद भविष्य के लिए आने वाली पीदियो की खुशहाल जिन्दगी के लिए हिन्दू, मुस्लिम, सिख एवं इसाई रूपी इन खम्भों को आपस में मजबूती के साथ खड़ा करना पड़ेगा, हर कोई चाहता है की उसका बच्चा पड़े लिखे और बड़ा आदमी बने, हम सभी इसका प्रयास भी करते हैं चाहे हम इतने समर्थ ना हो तब भी हम कैसे भी कर के उन्हें समाज में ऊँचा स्थान दिलाने का भरसक प्रयत्नं करते है, परन्तु कभी भी इस विषय पर नहीं सोचते की उनका सामाजिक विकास भी हो, आपसी प्रेम और भाई चारे के विषय में कभी नहीं सिखलाते जो की सबसे ज्यादा जरुरी है उन्हें भटकने से बचाने के लिए, आयोध्या का विवाद एक राजनितिक साजिश है और आम आदमी इसमें पिस रहा है, अपने वोट के चक्कर में नेतागण हमे आपस में भिडवाते है और अपना आराम से अपने घरो में सोते है वो भी पूरी सुरक्षा व्यवस्था के बीच, आज तक जितने भी सांप्रदायिक दंगे या उपद्रव हुए हैं क्या कभी कोई नेता भी इनकी भेंट चदा है शायद नहीं क्यूंकि इनका काम है आग लगाना और अपने हाथ सेकना, १९८४ में हुए सिख दंगो में शामिल नेताओ को अभी तक कोई सजा नहीं मिली, ये हम सोचना है की हम इनकी बातो में ना आये, आयोध्या पर जो भी फैसला आएगा हमे मंजूर होगा हमे मिलजुलकर रहना है किसी के बहकावे में ना आकर अपने परिवार के बारे में सोचे तो बेहतर होगा, यदि आयोध्या पर आने वाले फैसले पर हम बहक गए तो ये याद रखो की ये आग फिर कभी नहीं बुझेगी, जो शायद इस देश को तबाह करने वालो के लिए एक सुनहरा मौका बन जाएगा, आज हमारा देश जो आगे बढ चुका है वो शायद इतना पीछे खिसक जाए की हम वो मुकाम फिर कभी हासिल ही ना कर पाए, इस देश का अमन और चैन हमारे हाथो में है और हम इसे कभी मिटने नहीं देंगे. मुझे एक बात याद आई है की उत्तर प्रदेश के एक गाँव में किसी बाबा की मजार थी जब उसका पुनर्निर्माण करवाया जा रहा था तो वहा से एक शिवलिंग भी प्रकट हो गया, उस गाँव में हिन्दू और मुस्लिम दोनों रहते है और उस गाँव का प्रधान एक मुस्लिम ही है, ये बात किसी धार्मिक संगठन को पता चली तो वो वहा पहुँच गया परन्तु गाँव वालो ने उन्हें गाँव की सीमा पर ही रोक दिया और कहा की ये हमारे गाँव का मसला है हम आपस में सुलझा लेंगे ये फैसला उस पूरे गाँव के लोगो का था, उन्होंने जहा शिवलिंग प्रकट हुआ था वहा पर शिव मंदिर एवं आधे स्थान पर मस्जिद का निर्माण करवाया, ये एक उदाहरण है हम सभी के लिए आपसी प्रेम और भाईचारे का जो उस गाँव के लोगो ने दिखाया, आज वह पर नमाज और शिव पूजा दोनों साथ साथ होती है. आयोध्या के आलावा इस समय देश के सामने और भी कई मुद्दे है जो हमको सुलझाने हैं जैसे अशिक्षा, बेरोजगारी, गरीबी, भ्रष्टाचार और ऐसे ही अनेक मुद्दे हैं जो शायद मंदिर मस्जिद विवाद से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं, यदि केवल मंदिर और मस्जिद के लिए लड़ते रहे तो अन्य समस्याए और भी विकराल रूप ले लेंगी, आयोध्या के ऊपर इन राजनितिक पार्टियों को ही लड़ने दिया जाए तो बेहतर होगा, हम इससे अपने आप को दूर ही रखेंगे.
शुक्रवार, 24 सितंबर 2010
बुधवार, 8 सितंबर 2010
Naxalities
नक्सलवाद की समस्या से आज देश झूझ रहा है परन्तु सरकार इस विषय में कुछ भी नहीं कर पा रही है, जो कुछ भी अभी तक हुआ है उससे हमे एक ही बात देखने में आती है की नक्सलियों को देश में समर्थन प्राप्त है और नक्सलीयो के पास पर्याप्त मात्रा में संसाधन भी हैं, मेरा मानना है की हमे नक्सलियों से लगातार संपर्क बनाये रखना चाहिए और उन्हें बातचीत के लिए आमंत्रित करते रहना चाहिए, क्योंकि ये कोई विदेशी आक्रमणकारी तो हैं नहीं ये हमारे ही भाई हैं जो शायद खुद भटक गए हैं या हमारे देश की नीतियों द्वारा भटका दिए गए हैं, कोई भी आदमी हथियार उठाना पसंद नहीं करता खासकर इस देश का गरीब किसान परन्तु समाज के ठेकेदारों द्वारा जब उनका शोषण चरम पर पहुँच जाता है और न्याय की कोई उम्मीद नहीं दिखती, उनका सब कुछ उन्हें लुटता ही दीखता है ना अपना ना ही अपने बच्चों का भविष्य उन्हें किसी तरह से सुखद होगा ऐसा महसूस होता है, तब मजबूर होकर वह हथियार उठाता है, यह देश की सरकार को सोचना है की वो किश तरह से देश के गरीब किसान के जीवन स्तर को सुधार सकती है, जो किसान हमारा पेट भरने के लिए दिन रात खेती बाड़ी करता है आज वही किसान इस देश में भूखा मर रहा है, कोई आत्महत्या कर रहा है तो कोई सरकार के खिलाफ हथियार उठा रहा है, हमे इस समस्या से निबटने के लिए उनका जीवन स्तर सुधारना होगा बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की उचित व्यवस्था करनी होगी, मुझे सरकार के इस कदम की प्रशंसा करनी होगी जिसमे ये घोषणा हुई है की सरकार नक्सल पीड़ित राज्यों में केंद्रीय विद्यालय खोलने वाली है, ऐसे ही कुछ और अच्छे कदमो की आवश्यकता है, यही कदम आज से २० साल पहले लिए जाते तो शायद ये समस्या इतनी गंभीर नहीं होती, लेकिन कहते है देह आयद दुरुस्त आयद, उम्मीद करता हूँ की सरकार इन नक्सल पीड़ित राज्यों के लिए और अच्छी योजनाये लाएगी और सबसे बड़ी बात उन योजनाओ को लागु करेगी और उनका फायदा सही लोगो तक पहुंचाएगी जो इस देश की बड़ी विडंबना है की सही वस्तु जरूरतमंद के पास नहीं पहुँच पाती.
Caste war
हमारी न्यायपालिका और सरकार ने अनुसूचित जाति, जनजाति एवं अन्य पिछड़े वर्ग को उनकी जाति से संबोधित करने वालो के लिए सजा का प्रावधान रखा है, परन्तु दूसरी और उन्हें स्वयं जाति प्रमाण पत्र देकर ये विश्वास दिला रही है की वो नीच जाति से सम्बंधित हैं, क्या उन्हें जाति प्रमाण पत्र देना स्वयं में नियमो का उल्लंघन नहीं है, एक आम आदमी यदि किसी को उसकी जाति से संबोधित करता है तो उसे सजा मिलनी चाहिए, परन्तु यही कार्य न्यायपालिका लिखकर दे तो उसमे कोई गुनाह नहीं है, ये कैसा इस देश का कानून है जो भेदभाव रखता है, हमें इस तरह के कानून पर दुबारा विचार करने की आवश्यकता है और साथ ही साथ इसको बदलने की भी आवशयकता है
सदस्यता लें
संदेश (Atom)